मॉनसून का ज्वॉइंट पेन पर क्या पड़ता है असर, जानें डॉक्टर्स की राय

मॉनसून का ज्वॉइंट पेन पर क्या पड़ता है असर, जानें डॉक्टर्स की राय

मॉनसून या बरसात का मौसम काफी सुहाना मौसम होता है, जिसमें रिमझिम गिरती बुंदें मन मोह लेती हैं, मगर इन सबके साथ बरसात अपने साथ खांसी-बलगम, बहती नाक, हल्का बुखार, आखों में खुजली, त्वचा में चकत्ते और ज्वॉइंट पेन भी लेकर आती है। बरसात के मौसम में ज्वॉइंट पेन की समस्या बढ़ जाती है।

मॉनसून या बरसात का मौसम काफी सुहाना मौसम होता है, जिसमें रिमझिम गिरती बुंदें मन मोह लेती हैं, मगर इन सबके साथ बरसात अपने साथ खांसी-बलगम, बहती नाक, हल्का बुखार, आखों में खुजली, त्वचा में चकत्ते और ज्वॉइंट पेन भी लेकर आती है। बरसात के मौसम में ज्वॉइंट पेन की समस्या बढ़ जाती है।

सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर के वरिष्ठ ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अखिलेश यादव का कहना है कि ज्वॉइंट पेन या जोड़ों के दर्द के साथ ही जोड़ों में सूजन होना, जोड़ो का दर्द या गठिया के रूप में जाना जाता है। जब यह बुखार या बीमारी के बाद पूरे शरीर में फैलने लगे सिवाए जोड़ों को छोड़कर तो इसे मोटे तौर पर रिएक्टिव गठिया के नाम से जाना जाता है।

रिएक्टिव गठिया जोड़ों के दर्द का सम्मिश्रण है, क्योंकि वायरल के साथ-साथ बैक्टीरियल संक्रमण भी शरीर में कहीं भी हो सकता है सिवाए घुटने को छोड़कर। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर क्यों रिएक्टिव के लक्षण शरीर के उन क्षेत्रों में बढ़ रहे हैं जो संक्रमित नहीं हैं। जब किसी के शरीर में इंफेक्शन होता है, तब इम्यून सिस्टम संक्रमण रोगाणु जैसे बैक्टीरिया, वायरस आदि से छुटकारा पाने के लिए एंटीबॉडीज और अन्य रसायन बनाते हैं।

इम्यून सिस्टम और कीटाणुओं को संक्रमण के बीच लड़ाई से अन्य रसायनों और मलबे जैसे मृत कीटाणुओं के टुकड़े बन जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि वायरल की प्रोटीन संरचना और बैक्टीरियल की बाहरी कवर मानव जोड़ों की संयुक्त अस्तर एक जैसी होती है, इसलिए जब शरीर इस वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ काम कर रहा होता है, तो इसका मतलब यह होता है कि वे अपने घुटनों को कवर करने के खिलाफ कार्य कर रहा है।

यह शरीर के कुछ हिस्सों को अपना स्थान बनाने लगता है, जैसे घुटने की सिम्पोजिएम में। इसके कारण ज्वॉइंट में सूजन या जलन हो सकता है, जबकि अधिकांश रिएक्टिव गठिया के होने के कारण या एक वायरल बीमारी के बाद अल्फा वायरस, चिकुनगुनिया, हेपेटाइटिस, रूबेला वायरस, रिट्रोवायरस जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

डॉ. यादव के अनुसार, शरीर के जोड़ों का सामान्य रूप से कार्य न कर पाना वायरल गठिया की मुख्य अस्वस्थता है। आमतौर पर वायरल गठिया हल्के और स्व-सीमित होती है। यह कुछ ही हफ्तों तक रहता है लेकिन जोड़ों में दर्द काफी समय परेशान करते हैं और कुछ लोगों में स्थायी रूप से बनी रहती है। रिएक्टिव गठिया होने की कोई परीक्षण पुष्टि नहीं कर सकता है। निदान विशिष्ट लक्षण पर आधारित होते हैं, जो संक्रमण का अनुकरण करते हैं। हालांकि, परीक्षणों में रक्त परीक्षण और एक्स-रे गठिया के अन्य कारणों जैसे गाउट या रुमेटी गठिया में किया जाता है।

नोट: यह एक सामान्य जानकारी है। लेख किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करना बेहतर है।