सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को राहत, जाति सर्वेक्षण आंकड़े जारी करने पर रोक से इनकार

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर केंद्र ने पुलवामा हमले का हवाला दिया

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 35ए को लागू करने से समानता, देश के किसी भी हिस्से में नौकरी करने की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकार वस्तुतः छिन गए थे।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 35ए को लागू करने से समानता, देश के किसी भी हिस्से में नौकरी करने की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकार वस्तुतः छिन गए थे। यह टिप्पणी सीजेआई ने उस वक्त की जब केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारतीय संविधान के विवादास्पद प्रावधान का उल्लेख किया। सरकार की ओर से उन्होंने कहा कि यह केवल पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है और यह भेदभावपूर्ण है।

केंद्र ने पीठ को बताया कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान भेदभाव नहीं बल्कि विशेषाधिकार थे। सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से आगे कहा, “आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के समक्ष अनुच्छेद 370 और 35ए का बचाव कर रहे हैं।”

सॉलिसिटर की दलीलों को स्पष्ट करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 35ए को लागू करके आपने वस्तुतः समानता, देश के किसी भी हिस्से में पेशा करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया और यहां तक कि कानूनी चुनौतियों से छूट एवं न्यायिक समीक्षा की शक्ति भी प्रदान की।

उधर, सुप्रीम कोर्ट में 11वें दिन की बहस के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सोमवार को धारा 370 पर भी पक्ष रखा गया। सरकार की ओर से कहा गया कि फरवरी 2019 में पुलवामा में CRPF काफिले पर जिहादी हमले के बाद केंद्र ने ये मन बनाया कि कश्‍मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म कर दिया जाएगा और वहां केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा।

तुषार मेहता ने कहा कि बहुत-सी चीजें हुईं। पुलवामा हमला 2019 की शुरुआत में हुआ और यह कदम कई चीजों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था। जैसे संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे आदि। उन्होंने केंद्र की तरफ से दलील रखी कि यह एक सुविचारित प्रशासनिक मुद्दा है। इस निर्णय से पहले और अच्छी तरह से सोचा गया है और जल्दबाजी में लिया गया निर्णय नहीं है।

दरअसल, जम्‍मू-कश्‍मीर के पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस सहित कई दलों ने केंद्र सरकार के इस कदम को वहां के लोगों के अधिकारों का हनन करने वाला और उनकी संप्रभुता के खिलाफ बताया था। साथ ही अनुच्छेद 370 और 35ए को फिर से बहाल करने की मांग की गई है। तुषार मेहता ने दोनों दलों की दलीलों पर कहा कि अब लोगों को एहसास हो गया है कि उन्होंने क्या खोया है। अनुच्छेद 35ए हटने से जम्मू-कश्मीर में निवेश आना शुरू हो गया है और पुलिस व्यवस्था केंद्र के पास होने से क्षेत्र में पर्यटन भी शुरू हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अलगाव के बाद से लगभग 16 लाख पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है और क्षेत्र में नए होटल खोले गए हैं, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है। सुनवाई के अंत में जस्टिय संजीव खन्ना ने मेहता से दो पहलुओं को स्पष्ट करने के लिए कहा। पहला- क्या लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करना इसे डाउनग्रेड करना है? जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है। दूसरा, अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत, अधिकतम कार्यकाल 3 साल है। तीन साल का यह कार्यकाल समाप्‍त हो चुका है। लिहाजा इससे स्पष्ट किया जाए।