आजम खान को हेटस्पीच मामले में राहत, वॉयस सैंपल लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

आजम खान को हेटस्पीच मामले में राहत, वॉयस सैंपल लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सांसद आजम खान को भड़काऊ भाषण मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में रामपुर में समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी से जुड़े मामले में वॉयस सैंपल देने के निचली अदालत के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान को भड़काऊ भाषण मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में रामपुर में समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी से जुड़े मामले में वॉयस सैंपल देने के निचली अदालत के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान की याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है।

आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में वायस सैंपल देने के ट्रायल कोर्ट के निर्देश के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। इस याचिका पर सपा नेता के वकील कपिल सिब्बल ने मंगलवार को जल्द सुनवाई की मांग की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करने की बात कही थी। जिसके बाद बुधवार को इस मामले पर न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की।

पीठ ने सपा नेता आजम खान द्वारा दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और मामले में शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है। मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा, “29 अक्टूबर को दिए गए ट्रायल कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक रहेगी, जिस फैसले को हाईकोर्ट ने 25 जुलाई को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी थी।”

कपिल सिब्बल ने इससे पहले कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग करते हुए कहा था कि ट्रायल कोर्ट में बुधवार को मामले की सुनवाई होने वाली है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट मामले में जल्द सुनवाई करे। आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था।

यह मामला अगस्त 2007 में धीरज कुमार की शिकायत के आधार पर दर्ज की कराई गई एफआईआर के बाद सामने आया था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि खान ने पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। साथ ही समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।

आजम पर उस समय विधान सभा सदस्य (एमएलए) के रूप में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। मामला भारतीय दंड संहिता, 1860, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज किया गया था।