पंकज त्रिपाठी के पिता का निधन, गांव में ही ली आखिरी सांस

पंकज त्रिपाठी के पिता का निधन, गांव में ही ली अंतिम सांस

मशहूर फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी के पिता का निधन हो गया है। पंकज के पिता पंडित बनारस तिवारी 98 साल के थे। उन्होंने अपने गांव में ही आखिरी सांस ली। पिता के अंतिम समय में पंकज त्रिपाठी उनके साथ नहीं थे।

मशहूर फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी के पिता का निधन हो गया है। पंकज के पिता पंडित बनारस तिवारी 98 साल के थे। उन्होंने अपने गांव में ही अंतिम सांस ली। पिता के अंतिम समय में पंकज त्रिपाठी उनके साथ नहीं थे। जैसाकि मालूम है कि पंकज त्रिपाठी का पैतृक गांव बिहार के गोपालगंज जिले में है। उनका माता-पिता बेलसंड नाम के गांव में रहते थे।

पंकज त्रिपाठी की परवरिश भी इसी गांव में हुई थी। बेलसंड में ही पंकज त्रिपाठी के पिता ने अंतिम सांस ली। पिता के अंतिम दर्शन के लिए पंकज बिहार के जिले गोपालगंज स्थित अपने गांव के लिए रवाना हो गए है। पंकज त्रिपाठी के पिता का निधन किसी बीमारी से हुआ या फिर स्वाभाविक मृत्यु हुई अभी इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आई है।

पंकज अपने पिता के काफी करीब थे। मुंबई में बिजी रहने के बावजूद भी वह अकसर गांव जाया करते थे और पिता के साथ वक्त बिताया करते थे। पंकज त्रिपाठी ने कई बार सोशल मीडिया के जरिए बताया है कि उनकी जिंदगी में उनके पिता का कितना बड़ा योगदान रहा है। पंकज ने हमेशा कहा है कि वो आज इस मुकाम पर ना होते अगर उनके पिता उनके फैसलों का सम्मान न करते।

पंकज एक बार बताया था कि उनके पिता इतने भोले थे कि उन्हें ये भी नहीं पता कि थियेटर या एक्टिंग क्या होती है। पंकज के पिता नहीं चाहते थे कि वह एक्टर बने। उनके पिता चाहते थे कि पंकज पढ़-लिखकर डॉक्टर बनें। वहीं जब पंकज त्रिपाठी मुंबई में सेटल हो गए तो उनके पिता उनसे मिलने आए थे। ऊंची-ऊंची इमारतें, भीड़ भाड़ और फर्राटे से भागती जिंदगी उन्हें जरा भी रास नहीं आई।

मुंबई से जब वह वापस अपने गांव पहुंचे तो फिर दोबारा कभी मुंबई नहीं आए। पंकज त्रिपाठी ने एक इंटरव्यू के दौरान यह भी बताया था कि उनके पति कभी किसी थिएटर में फिल्म देखने नहीं गए। घर पर भी वह तभी फिल्म देखते थे जब टीवी पर आती थी या कोई कंप्यूटर पर दिखा देता था।

पंकज मायानगरी में रहकर भी अपने परिवार के व्यवहार व संस्कार को नहीं भूले हैं। अपने परिवार व गांव -जवार से मिलने वे बराबर आते रहते हैं। छठ में डाला के लिए खेत से खुद हल्दी निकालते हैं। घर पर अपने हाथ से लिट्टी बनाते हैं। गोपालगंज में आकर वे अपने समाज के लोगों से मिलते हैं तो किसी को लगता नहीं कि उनसे कोई ‘स्टार एक्टर’ मिल रहा है। वहीं, खांटी भोजपुरी अंदाज, हंसी मजाक और बचपन-जवानी की किस्सा कहानी।

पंकज जुलाई 2021 में ‘मिमी’ रिलीज होने से पहले अपनी फिल्म की सफलता के लिए मां-पिता से आशीर्वाद लेने अपने गांव आए थे। तब पिता पंडित बनारस तिवारी और उनकी मां हेमवंती देवी ने अपने लाल को खूब आशीर्वाद दिए थे। दोनों ने अपने लाल के लिए सफलता के कदम चूमने की कामना की। तब पंकज भावुक हो गए थे। कहा था कि मां-पिता का आशीर्वाद मिल गया तो फिल्म जरूर हिट होगी। इसके पूर्व ‘कागज’ के रिलीज होने से पूर्व वे गांव आकर मां-पिता के चरण छुए थे। ‘शेरदिल-द पीलीभीत ’और हाल ही में रिलीज ओएमजी के सफल होने की भी पिता पंडित बनारसी तिवारी ने कामना की थी।